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Write सम्बन्ध एवं फलन Relations and Functions

1. R = {(x.y) : xRy}

2. यदि R = {(x, y): x∈ A तथा y ∈ B} तब R⁻¹= {(y, x) : y ∈ B तथा x ∈ A}

3. सम्बन्ध R स्वतुल्य होगा, यदि aRa, जबकि a∈A अथवा (a, a)∈R जबकि a ∈ A

4. सम्बन्ध R सममित होगा, यदि aRb ⇒ bRa, जबकि a, b ∈ A

5. सम्बन्ध R प्रति सममित होगा, यदि aRb और bRa⇒ a = b, जबकि a, b ∈ A

6. सम्बन्ध R संक्रामक होगा, यदि aRb और bRc ⇒aRc, जबकि a, b, c ∈ A

7. सम्बन्ध R तत्समक होगा, यदि (a, b) ∈ R⇒ a= b जबकि a, b ∈ A

8. f : A → B,f आच्छादक प्रतिचित्रण (Onto mapping) कहलाता है, यदि f(A) = B (सहडोमेन)

9. f: A → B,f अंत:क्षेपी प्रतिचित्रण (Into mapping) कहलाता है, यदि f(A) ⊂ B (सहडोमेन)

10. प्रतिचित्रण f एकैकी (one-one) होगा, यदि

X ≠X ⇒f(x₁) = f(x₂) जबकि x₁,x₂ ∈ A

अथवा

f(x₁) = f(x₂) ⇒ x₁ = x₂ जबकि x₁,x₂ ∈ A

11. प्रतिचित्रण f बहु-एक (Many one mapping) होगा, यदि x₁ = x₂ ⇒ f(x₁) = f(x₂) जबकि x₁,x₂ ∈ A

2 .प्रतिलोम त्रिकोणमितीय फलन

(Inverse Trigonometric Functions)

1. sin⁻¹x = cosc⁻¹(1/x)

2.cosec⁻¹ x = sin⁻¹(1/x)

3. cos⁻¹x= sec⁻¹(1/x)

4.Sec⁻¹x = cos⁻¹(1/x)

5. tan⁻¹ x = cot⁻¹ (1/x)

6.cot⁻¹x = tan⁻¹(1/x)

7. sin (sin⁻¹x)=x

या sin⁻¹(sin x) = x

8. cos (cos⁻¹x) = x

या

cos⁻¹ (cos x) = x

9.tan⁻¹ (tan x) = x

या

tan(tan⁻¹ x) = x

10. (i) sin⁻¹x + cos⁻¹x = π/2,

(ii) tan⁻¹ x + cot⁻¹ x = π/2,

(iii) sec⁻¹x+cosec⁻¹x = π/2

11. (i) tan⁻¹x ± tan⁻¹y = tan⁻¹{(x±y)/(1-+xy)}

(ii) tan⁻¹x+tan⁻¹y + tan⁻¹z = tan⁻¹{(x+y+z-xyz)/(1-xy-yz-zx)}

12. cot⁻¹x ± cot⁻¹y = cot⁻¹{(xy ⁻+ 1)/(y±x)}

13. sin⁻¹x ± sin⁻¹y =sin⁻¹[x√(1-y²)+y√(1-x²)]

14. cos⁻¹x ± cos⁻¹y =

cos [xy ⁻+ √(1-x²)√(1-y²)]

15.2tan⁻¹x = sin⁻¹{2x/(1+x²)}

= cos⁻¹[(1 -x²)/(1+x²)] = tan⁻¹{ 2x/(1⁻x²) }

16. 2sin⁻¹x = sin⁻¹{2x√(1-x²)}

17. 2cos⁻¹x = cos⁻(2x²-1)

18. 3sin⁻¹x = sin⁻¹(3x-4x³)

19. 3cos⁻¹x = cos⁻¹(4x³-3x)

20. 3tan⁻¹x = tan⁻¹ {(3x-x³)/ (1-3x²)}


3 आव्यूह Matrices

1. यदि तीन आव्यूह क्रमशः A = [aᵢⱼ]ₘₓₙ B =[bᵢⱼ]ₘₓₙ C = [cᵢⱼ]ₘₓₙ हैं।

तब (i) A + B =[aᵢⱼ]ₘₓₙ + [bᵢⱼ]ₘₓₙ = [aᵢⱼ + bᵢⱼ]ₘₓₙ

(ii) A + B = B + A

(iii) (A + B) + C = A+ (B + C)

(iv) - A = [- aᵢⱼ ]ₘₓₙ

(v) A - B = [aᵢⱼ]ₘₓₙ - [bᵢⱼ]ₘₓₙ = [aᵢⱼ - bᵢⱼ]ₘₓₙ

(vi) अदिश का आव्यूह से गुणनफल: यदि k एक अदिश संख्या है तब k.A= [k.aᵢⱼ]

(vii) k (A + B) = kA + kB

(viii) यदि k₁ व k₂ दो अदिश हैं तो (k₁ + k₂)A = K₁A+K₂A तथा k₁ (k₂A) = (k₁ k₂ ) A

2. आव्यूहों का गुणनफल

यदि A तथा B दो आव्यूह हैं तो इनका गुणनफल AB तभी सम्भव है जब A में स्तम्भों की संख्या B में पंक्तियों की संख्या के बराबर हो।

यदि A = [aᵢⱼ]ₘₓₚ तथा B = [bᵢⱼ]ₚₓₙ

तब (ᵢ) A . B = [aᵢⱼ]ₘₓₚ x [bᵢⱼ]ₚₓₙ = [cᵢⱼ]ₘₓₙ

जबकि cᵢⱼ = aᵢ₁ . b₁ⱼ + aᵢ₂ . b₂ⱼ + …. +aᵢₚ .bₚⱼ

(ii) A (BC) = (AB) C

(iii) A (B+ C) = AB + AC

(iv) गुणन के तत्समक का अस्तित्व-प्रत्येक वर्ग आव्यूह A के लिए समान कोटि के एक आव्यूह का अस्तित्व इस प्रकार होता है कि IA = AI = A

3.आव्यूह का परिवर्त

किसी आव्यूह A की पंक्तियों को स्तम्भों तथा स्तम्भों को पंक्तियों में परस्पर बदलने से प्राप्त आव्यूह को दिये गये आव्यूह A का परिवर्त आव्यूह कहते हैं। तथा इसे A' या Aᵀ से निरूपित करते हैं।

(i)(A + B)' = A' + B'

(ii) (A') = A'

(iii) (AB)' = B'A'

(iv) यदि एक अदिश है तब (kA)' = KA'

4. सममित तथा विषम सममित आव्यूह

(i) यदि वर्ग आव्यूह A में A' = A तो A को सममित आव्यूह कहते हैं।

(ii) यदि वर्ग आव्यूह A मे A'= -A तो A को विषम सममित आव्यूह कहते हैं।

(iii) वास्तविक अवयवों वाले किसी वर्ग आव्यूह A के लिए A+ A' एक सममित आव्यूह तथा A- A' एक विषम सममित आव्यूह होते हैं।

(iv) किसी वर्ग आव्यूह को एक सममित तथा एक विषम सममित आव्यूहों के योगफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

5. व्युत्क्रमणीय आव्यूह

एक n क्रम का वर्ग आव्यूह A व्युत्क्रमणीय कहलाता है यदि एक n क्रम का वर्ग आव्यूह B इस प्रकार हो कि AB = BA = I

आव्यूह B, आव्यूह का प्रतिलोम कहलाता है अर्थात् A⁻¹ = B

(i) प्रत्येक व्युत्क्रमणीय आव्यूह का प्रतिलोम अद्वितीय होता है।

(ii) यदि A व B दो n क्रम के व्युत्क्रमणीय आव्यूह है तो (AB)⁻¹ = B⁻¹ A⁻¹

4 सारणिक Determinants

सारणिक

(i) यदि A = [aᵢⱼ] एक कोटि n का वर्ग आव्यूह है तब आव्यूह A के सारणिक को ∆, det A या |A| द्वारा निरूपित करते हैं।

(ii) यदि [aᵢⱼ] कोटि 1 का वर्ग आव्यूह है तो आव्यूह A का सारणिक |A| = a₁₁ या |a₁₁| = a₁₁

(iii) यदि A=

[ a₁₁ a₁₂ ]

[ a₂₁ a₂₂ ]

द्वितीय कोटि का वर्ग आव्यूह है तो आव्यूह A का सारणिक | A| = | a₁₁ a₁₂ |

|a₂₁ a₂₂ |

= ( a₁₁ a₂₂ - a₂₁ a₁₂ )

(iv) | a₁₁ a₁₂ a₁₃ |

| a₂₁ a₂₂ a₂₃ |

| a₃₁ a₃₂ a₃₃ |

तृतीय कोटि के वर्ग आव्यूह का सारणिक है तो इसका द्वितीय पंक्ति R₂ के सापेक्ष विस्तार करने

|A| = (-1)²⁺¹a₂₁ |a₁₂ a₁₃| +(-1)²⁺²a₂₂ |a₁₁ a₁₃|

|a₃₂ a₃₃| |a₃₁ a₃₃|

+(-1)²⁺³ | a₁₁ a₁₂|

| a₃₁ a₃₂|

इसी प्रकार किसी भी अन्य स्तम्भ व पंक्ति के सापेक्ष भी विस्तार किया जा सकता है।

(v) सारणिकों के गुणधर्म

(a) यदि किसी सारणिक की किसी पंक्ति या स्तम्भ का प्रत्येक अवयव शून्य हो, तो उस सारणिक का मान भी शून्य होता है।

(b) यदि किसी सारणिक को पंक्तियों को स्तम्भों में तथा स्तम्भों को पंक्तियों में परस्पर बदल दें, तो सारणिक के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

(c) यदि किसी सारणिक में दो आसन्न पंक्तियों अथवा स्तम्भों को परस्पर बदल दिया जाये, तो इस प्रकार प्राप्त सारणिक का मान मूल सारणिक के मान का ऋणात्मक होगा।

(d) यदि किसी सारणिक की दो पंक्तियाँ अथवा दो स्तम्भ सर्वसम हो तो सारणिक का मान शून्य होता है।

(e) यदि किसी सारणिक की किसी पंक्ति अथवा किसी स्तम्भ के प्रत्येक अवयव को किसी समान राशि से गुणा कर दिया जाये तो सारणिक में उस संख्या से गुणा हो जाता है अर्थात् नये सारणिक का मान पहले सारणिक के मान का गुना हो जाता है।

(f) यदि किसी सारणिक में किसी पंक्ति अथवा स्तम्भ का प्रत्येक अवयव दो पदो का योगफल हो तो उस सारणिक को उसी क्रम के दो सारणिकों के योगफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

(g) यदि सारणिक की किसी पंक्ति अथवा स्तम्भ के सभी अवयवों को किसी निश्चित राशि से गुणा करके किसी अन्य पंक्ति अथवा स्तम्भ के संगत अवयवों में जोड़ अथवा घटा दिया जाये तो सारणिक का मान अपरिवर्तित रहता है।

(h) यदि किसी सारणिक में चर x प्रयुक्त हो तथा इसके अवयव चर x में बहुपद हो एवं x = y रखने पर सारणिक का मान शून्य हो जाता है,तो इस सारणिक का एक गुणनखण्ड (x -y) होगा।

(vi)यदि किसी त्रिभुज जिसके शीर्ष (x₁, y₁), (x₂ y₂), तथा (x₃, y₃) हो तो इसका क्षेत्रफल

| x₁ y₁ 1 |

Δ = ½ | x₂ y₂ 1 |

| x₃ y₃ 1|

(vii) सारणिक के उपसारणिक और सहगुणनखण्ड

(a) यदि किसी सारणिक का कोई अवयव iवीं पंक्ति तथा j वे स्तम्भ में हो तो iवीं पंक्ति तथा jवे स्तम्भ को छोड़ने पर शेष अवयवो से बने सारणिक को उस अवयव का उपसारणिक कहते हैं।

(b) यदि किसी सारणिक का अवयव aᵢⱼ है तो इस अवयव का सहगुणनखण्ड (-1)ᶦ⁺ʲ x इसका उपसारणिक

(viii) अव्युत्क्रमणीय आव्यूह

|A| = 0 तो A एक अव्युत्क्रमणीय आव्यूह है। पुनः यदि | A| ≠ 0 तो A को व्युत्क्रमणीय आव्यूह कहते है।

(ix) वर्ग आव्यूह A का सह खण्डज (adjoint) आव्यूह adj A = A के अवयवों के सह-खण्डों से बने आव्यूह का परिवर्त (transpose)

(x) आव्यूह A का व्युत्क्रम आव्यूह A⁻¹ = adj A / |A|


5.सांतत्य तथा अवकलनीयता

Continuity and Differentiability

1. x = a पर फलन f(x) को सतत कहा जाता है।

(i) फलन f(x) बिन्दु x = a पर परिभाषित है; अर्थात् f(a) का एक निश्चित मान है।

(ii) lim ₓ→ₐ f(x) प्राप्त हो सकती है।

(iii) lim ₓ→ₐ f(x) = f(a) हो।

2. एक फलन f(x) बिन्दु x = a पर अवकलनीय कहलाता है यदि

Rf' (a) = Lf' (a)

3. अवकलन- गुणांक अथवा अवकलज की परिभाषा

यदि y = f(x), तब x के सापेक्ष का अवकलन- गुणांक निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होता है।

f' (x) = dy/dx lim ₕ→ₒ { f(x+h) - f(x) }/h

4. संयुक्त फलनों का अवकलन अर्थात् यदि y कई फलनों का फलन है, तब

d/dx (प्रथम फलन)

= d(प्रथम फलन)/d(द्वितीय फलन) . d(द्वितीय फलन) /d (तृतीय फलन).....d(अन्तिम फलन)/dx


5. अवकलन- गुणांकों में विलोम सम्बन्ध

(dy/dx) . (dx/dy) = 1 तथा

(dx/ dy) = (dy/dt).(dt/dx)

6. मुख्य फलनों के अवकलन- गुणांक (सूत्र)

(d/dx)(c) =0

(d/dx)(xⁿ) = nxⁿ⁻¹

(d/dx)(eˣ) = eˣ

(d/dx) (logₑ x) =1/x

(d/dx)(logₐ x) = 1/x (logₐ e)

(d/dx)(aˣ) = aˣ( logₑ a)

(d/dx)(sinx) = cos(x )

(d/dx)(cosx) = - (sinx )

(d/dx)(tanx ) = sec²x

(d/dx)(cotx) = - cosec²x

(d/dx)(secx) = secx . tanx

(d/dx)(cosecx) = -cosecx .cotx

(d/dx)[ c.f(x) ] = c (d/dx).f(x)

(d/dx)(sin⁻¹x) = 1/√(1-x² )

(d/dx)(cos⁻¹x) = -1/√(1-x² )

(d/dx)(tan⁻¹x) =1/(1+x²)

(d/dx)(cot⁻¹x) = -1/(1+x²)

(d/dx)(sec⁻¹x) = 1/x√(x²-1 )

(d/dx)(cosec⁻¹x) = -1/x√(x² -1)

7. दो फलनों के गुणन का अवकलन-गुणांक

(d/dx)[ f(x).g(x)] =

= f(x).(d/dx) g(x) + g(x).(d/dx)(f(x)

8. दो फलनों के भाग का अवकलन-गुणांक

(d/dx)(अंश/हर) =

[हर (अंश का अ० गु०)- (अंश) (हर का अ० गु०)]/(हर)²


6.अवकलज के अनुप्रयोग Applications of Derivatives

1. राशियों के परिवर्तन की दर

lim ∆ₓ→ₐ (∆y/∆x)

= x के सापेक्ष y की तात्कालिक परिवर्तन दर

⇒dy/dx = x के सापेक्ष y की परिवर्तन दर

2. वृद्धिमान तथा ह्रासमान फलन

(1) वृद्धिमान फलन (Increasing Function)

अन्तराल (a,b) पर परिभाषित फलन f(x) वृद्धिमान फलन कहलाता है

यदि x₁<x₂ ⇒ f(x₁) ≤ f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈(a, b)

(ii) निरन्तर वृद्धिमान फलन (Strictly Increasing Function) अन्तराल (a, b) पर परिभाषित फलन f(x) निरन्तर वृद्धिमान फलन कहलाता है,

यदि x₁<x₂ ⇒ f(x₁) <f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

या x₁ > x₂ ⇒ f(x₁)> f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

(iii) ह्रासमान फलन (Decreasing Function) अन्तराल ] a, b [ पर परिभाषित फलन f(x) ह्रासमान फलन कहलाता है यदि

x₁< x₂ ⇒f(x₁) ≥ f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

या x₁ > x₂ ⇒ f(x₁)≤ f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

(iv) निरन्तर ह्रासमान फलन (Strictly Decreasing Function)

अन्तराल ] a, b [ पर परिभाषित फलन f(x) निरन्तर ह्रासमान फलन कहलाता है

यदि x₁< x₂ ⇒ f(x₁) > f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

या x₁ > x₂ ⇒ f(x₁)<f(x₂) ∀ x₁, x₂ ∈ ] a, b[

3. परिवर्तन सूत्र – यदि स्वतन्त्र चर X में अल्प परिवर्तन ∆x के संगत y में अल्प परिवर्तन ∆y है, तब

∆y = (dy/dx).∆x

4. वक्र के बिन्दु (a, b) पर स्पर्श रेखा की प्रवणता प्रवणता (m) tanψ = [dy/dx]⁽ᵅ´ᵇ⁾

5. वक्र के बिन्दु (a, b) पर स्पर्श रेखा का समीकरण - सूत्र y -y₁ = m (x- x₁) से, बिन्दु (a, b) पर स्पर्शो का समीकरण

(y-b)= [dy/dx]⁽ᵅ´ᵇ⁾ (x-a)

6. दो वक्रों का प्रतिच्छेदन कोण यदि वक्रो

y = f₁(x) तथा y = f₂(x) का प्रतिच्छेदन कोण θ हैं, तब

θ = tan |tan⁻¹{(m₁ - m₂)/(1+m₁m₂)}

जहाँ m₁ = d/dx [f₁(x)], m₂ =d/dx [f₂(x)]

7. वक्र के बिन्दु (a, b) पर अभिलम्ब (Normal) का समीकरण - माना बिन्दु (a, b) पर स्पशी की प्रवणता m तथा अभिलम्ब की प्रवणता M है

mxM=-1

⇒ M=-1/m

अब सूत्र y - b = M (x - a) से अभिलम्ब का समीकरण ज्ञात करो।

8. उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ के लिए प्रतिबन्ध फलन

y = f(x) के उच्चिष्ठ अथवा निम्निष्ठ के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध इस प्रकार है

f'(x) =0 अर्थात् dy / dx = 0

पर्याप्त प्रतिबन्ध इस प्रकार है x=aपर फलन y = f(x)


(i) उच्चिष्ठ (maximum) होगा, यदि x = aपर

d²y/dx = -ve

(ii) निम्निष्ठ (minimum) होगा, यदि x = a पर

d²y / dx² = + ve

(iii) न उच्चिष्ठ होगा और न ही निम्निष्ठ होगा,

यदि x = a पर d²y/dx² =0 तथा d³y/dx³≠ 0

7. समाकलन Integration

1. मुख्य फलनों के समाकलन (सूत्र)

∫1 dx = x + C,

∫c.f(x) dx = c ∫f(x)dx,

∫eˣ dx = eˣ +c ,

∫xⁿ dx = { ( xⁿ⁺¹)/(n+1) } + C

∫(1/x).dx = log x + c

∫aˣ dx = (aˣ/ logₑ a ) + C

∫ sinx dx = - cosx + c

∫ cox dx = sinx + c

∫ sex²x dx = tanx + C

∫ cosec²x dx = - cot x + C

∫ secx .tanx dx = secx +C

∫ cosecx cotx dx = - cosec x + C

∫ dx/√(1-x²) = sin⁻¹ x +C

∫ dx /(1+x²) = tan⁻¹ x + C

∫ dx/(x√x² -1) = sec ⁻¹ x + C

∫ dx / √(a² + x²) = (1/a). tan⁻¹(x/a) + C

∫ dx /(a² - x²) = (½a) log{(a+x)/(a-x)} +C

∫ dx / (x² -a²) = (½a)log{ (x-a)/ (x+a) }+C

∫ dx / √(a² - x²) = sin ⁻¹(x /a) + C

∫dx/√(a² + x²) = log[ x+ √(a²+x²) ] + C,

∫ dx/(√x² - a²) = log [ x + √(x² - a²) ] + C

∫ tan x dx = log sec x + C,

∫ cot x dx = log sin x +C

∫ cosec x dx = log tan (x/2)

= log ( cosec x - cot x) + C

∫ sec x dx = log tan( π/4 + x/2) + C

= ∫ log ( sec x + tan x )+ C

∫ { f'(x)/f(x) } dx = log [ f(x) ] + C

2. खण्डशः समाकलन (Integration by parts)

∫ [f(x) . g(x)] dx = f(x). ∫{g(x)dx - ∫(D f(x). ∫g(x) dx }

3. तीन मानक समाकलन

(i) ∫√(a² - x²) dx = (½)x√(a² - x²) +

½ a² sin⁻¹ (x/a) + C

(ii) ∫√(a² + x²) dx = (¹/₂)x √(a² + x²) + (¹/₂)a² log [x + √(a² + x²)]+C



(iii) ∫√(x²-a²) dx = (½)x √(x² -a²) - (½)a² log[ x + √(x²-a²)] + C


4. निश्चित समाकलन

माना ∫ f(x) dx = F(x) तब

ˣ⁼ᵃ

∫ₓ₌ᵇ f(x) dx अथवा

∫ᵇₐf(x) dx के मान को [ F(x) ]ᵇₐ = F(b) - F(a)

5.निश्चित समाकलन के प्रगुण

(i) ∫ᵇₐ k f(x) dx = ∫ᵇₐ f(x) dx

(ii) ∫ᵇₐ f(x)dx = ∫ᵇₐ f(t) dt

(iii) ∫ᵇₐ f(x)dx = 0 ( यदि f(x) , x का विषम फलन है

= 2∫ᵅ₀ f(x) dx (यदि f(x) , x का विषम फलन है)

(iv) ∫²ᵅ₀ f(x)dx = 2∫ᵅ₀ f(x) dx यदि f(2a - x) = f(x)

= 0 यदि f(2a - x) = - f(x)

6. वक्र y = f(x) ,x - अक्ष तथा x = a और y = b कोटियो द्वारा घिरे हुए क्षेत्र का क्षेत्रफल = ∫ᵇₐ y DX

7. वक्र x = f(y) ,y अक्ष तथा दो भुजो y= c और y= d से परिबद्ध क्षेत्रफल= ∫ᵈ꜀ x dya note in this area. It's really easy to share with others. Click here ...
     
 
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