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एक गाँव में दो भाई रहते थे – लल्लन और सुखवन. बड़ा भाई लल्लन लालची और दुष्ट था. छोटा भाई सुखवन सीधा और भोला था. पिता की मृत्यु के बाद लल्लन ने सारी पैतृक संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया. उसने सुखवन को फूटी कौड़ी नहीं दी और घर से भी निकाल दिया
पिता की संपत्ति पाकर लल्लन ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत करने लगा. लेकिन सुखवन और उसका परिवार गरीबी के दिन गुजार रहा था. छोटा-मोटा काम करके वह दो वक़्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाता था. अपनी गरीबी के कारण सुखवन हमेशा चिंता में डूबा रहता था.

दीवाली का त्यौहार आया. लल्लन का पूरा घर रौशनी से नहा उठा. परिवार से सब लोगों ने नए कपड़े पहने. घर में एक से बढ़कर पकवान और मिठाइयाँ बनाई गई. उनके घर बड़े ही धूमधाम से दीवाली मनाई जा रही थी.

उधर सुखवन के घर दीवाली के दिन भी अंधेरा था. उसके बच्चे भूख से तड़प रहे थे. लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे. बच्चों का हाल देख पत्नि ने उसे मदद मांगने बड़े भाई लल्लन के पास भेजा.
मन मारकर सुखवन लल्लन के घर गया और अपने घर का हाल बताकर कुछ पैसे उधार मांगे. लेकिन लल्लन ने उसकी मदद करने से इंकार कर दिया और उसे भगा दिया.

दु:खी मन से सुखवन अपने घर लौटने लगा. वह समझ नहीं पा रहा था कि अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए पैसों का इंतज़ाम कैसे करे?

तभी उसे रास्ते के किनारे खड़ी एक बूढ़ी अम्मा दिखाई दी. उसके पास ही लकड़ी का गठ्ठर पड़ा हुआ था. सुखवन ने सोचा कि यदि मैं इस बूढ़ी अम्मा की मदद कर दूं, तो शायद ये मुझे कुछ पैसे दे दे.

वह बूढ़ी अम्मा के पास गया और बोला, “अम्मा, क्या मैं ये लकड़ी का गठ्ठर आपके घर तक पहुँचा दूं? इसके बदले आप मुझे कुछ पैसे दे देना. मुझे पैसों की बहुत ज़रूरत है. कोई और काम भी होगा, तो मैं वो भी कर दूंगा.”

बूढ़ी अम्मा मान गई और सुखवन ने लकड़ी का गठ्ठर उसके घर तक पहुँचा दिया. बदले में बूढ़ी औरत ने उसे कुछ पैसे दिए. लेकिन वह पैसे इतने नहीं थे कि वह अपने परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था कर पाता. सुखवन अब भी उदास और चिंतित था.

उसे दु:खी चिंतित देख बूढ़ी अम्मा ने पूछा, “क्या बात है बेटा, तुम इतने दु:खी क्यों हो?”

सुखवन ने उसे अपनी गरीबी के बारे में पूरी बात बता दी.

उसकी बात सुनकर बूढ़ी अम्मा अपने घर से तीन मीठी रोटियाँ लेकर आई और सुखवन को देते हुए बोली, “ये मीठी रोटियाँ लेकर जंगल के पार जाओ. वहाँ तुम्हें तीन आलूबुखारे के पेड़ दिखेंगे. उनके सामने एक छोटा सा घर है, जिसमें तीन बौने रहते हैं. उन्हें मीठी रोटियाँ बहुत पसंद है. वे तुम्हारे हाथ में ये रोटियाँ देखेंगे, तो ज़रूर मागेंगे. तुम इन रोटियों के बदले उनसे पत्थर की चक्की मांग लेना. उस चक्की के मिलते ही तुम्हारे दिन बदल जायेंगे.”

सुखवन ने बूढ़ी अम्मा का धन्यवाद किया और मीठी रोटियाँ लेकर जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल पार करने के बाद उसे तीन आलूबुखारे के पेड़ दिखाई पड़े और उसके सामने छोटा सा घर.

सुखवन घर के पास गया और उसका दरवाज़ा खटखटाया. लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला. दो-तीन बार खटखटाने पर भी जब दरवाज़ा नहीं खुला, तो सुखवन ने दरवाज़े को ढकेल कर देखा. दरवाज़ा खुला गया और वह घर के अंदर घुस गया.
घर के अंदर उसने तीन छोटे बौनों को तीन छोटी कुर्सियों पर बैठकर बातें करते हुए देखा. जब बौनों की नज़र सुखवन पर पड़ी, तो वे क्रोध में आ गए और बोले, “कौन हो तुम, जो बिना अनुमति के हमारे घर में घुसे चले आ रहे हो?”

सुखवन मीठी रोटियाँ दिखाते हुए बोला, “मैं आप लोगों के लिए मीठी रोटियाँ लेकर आया हूँ.”

मीठी रोटियाँ देखकर बौनों का गुस्सा छू-मंतर हो गया. वे तीनों ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, “वाह, तुम हमारे लिए मीठी रोटियाँ लेकर आये हो. ये हमें बहुत पसंद हैं. जल्दी से ये हमें दे दो. इसके बदले तुम जो चाहे मांग लो.”

सुखवन ने उन रोटियों के बदले बौनों से पत्थर की चक्की मांगी. बौनों ने ख़ुशी-ख़ुशी वह चक्की उसे दे दी और उससे मीठी रोटियाँ ले ली.

सुखवन जब चक्की लेकर जाने को हुआ, तो बौने बोले “सुनो, ये कोई मामूली चक्की नहीं है, बल्कि जादुई चक्की (Jadui Chakki) है. इससे तुम जो मांगोगे, वो तुम्हें मिलेगा. लेकिन याद रखना कि ये जादुई चक्की जब चलती है, तो अपने आप नहीं रुकती. इसे रोकने के लिए इस पर लाल कपड़ा डालना पड़ता है. तुम भी ऐसा ही करना.”

सुखवन बोला, “जी बिलकुल, मैं ऐसा ही करूंगा.” और वह बौनों का धन्यवाद कर अपने घर वापस आ गया.
घर पहुँचकर उसने देखा कि उसके बच्चे भूख से बिलख रहे हैं और पत्नि उदास बैठी हुई है. उसने अपनी पत्नि को पूरी घटना बताई. फिर दोनों ने जमीन में एक चादर बिछाकर उस पर जादुई चक्की (Jadui Chakki) रख दी और बोले, “चक्की चक्की हमें चांवल दो.”

देखते-देखते जादुई चक्की (Jadui Chakki) से चांवल निकलने लगा. जब पर्याप्त चांवल निकल गये, तो सुखवन ने लाल कपड़े से चक्की को ढक दिया. चक्की रुक गई. फिर एक-एककर सुखवन ने चक्की से दाल, गेंहूँ और ज़रूरत के अन्य सामान मांगे. जादुई चक्की (Jadui Chakki) ने वह सब दिया, जो उसने मांगा. उस दिन सुखवन, उसकी पत्नि और बच्चों ने भरपेट खाना खाया.

अब सुखवन जादुई चक्की (Jadui Chakki) से ढेर सारा अनाज मांगता और उसे बाज़ार जाकर बेच देता. धीरे-धीरे उसकी आर्थिक स्थिति सुधरने लगी. अब उसके परिवार को किसी चीज़ की कोई कमी नहीं रही. उसने गाँव में आलीशान मकान बनवा लिया. उसने पैसे जमा कर अपना व्यवसाय भी शुरू कर लिया. जादुई चक्की (Jadui Chakki) के कारण सचमुच उसके दिन बदल गए.

जब उसकी समृद्धि की चर्चा उसके बड़े भाई लल्लन तक पहुँची, तो वह जल उठा. वह सोचने लगा कि कुछ समय पहले जिसको खाने के भी लाले पड़े हुए थे, वो अचानक इतना धनवान कैसे बन गया. अवश्य इसमें कोई राज़ है!!

उसने राज़ का पता लगाने का निश्चय किया और एक शाम सुखवन के घर में पास पहुँचा और छुपकर खिड़की से अंदर झांकने लगा. उसने देखा कि सुखवन एक चक्की के सामने बैठा हुआ है और कह रहा है, “चक्की चक्की मुझे चांवल दो”.

देखते ही देखते चक्की से चांवल निकलने लगा. लल्लन को समझते देर नहीं लगी कि सुखवन की समृद्धि के पीछे इस चक्की का हाथ है. वह चक्की चुराकर उससे ढेर सारी धन –दौलत मांगकर अमीर होने के सपने देखते हुए वहाँ से चला गया.
रात होने पर लल्लन फिर से सुखवन के घर आया. उस समय तक सुखवन और उसके परिवार के लोग सो चुके थे. खिड़की के रास्ते घर में घुसकर वह जादुई चक्की (Jadui Chakki) चुराकर अपने घर आ गया.

घर आकर वह अपनी पत्नि से बोला, “जल्दी से सामान बांध लो. बच्चों को साथ ले लो. हम अभी इसी समय गाँव छोड़कर जा रहे हैं.”

पत्नि को कुछ समझ नहीं आया, वह पूछने लगी, “बताओ तो सही क्या बात है? हमें क्यों गाँव छोड़ना पड़ रहा है?”

“सारी बात मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा. अभी सामान बांधों और चलो.” लल्लन बोला.

पत्नि ने वैसा ही किया. चक्की लेकर अपनी पत्नि और बच्चों के साथ वह गाँव छोड़कर निकल पड़ा. वह कहीं और जाकर बस जाना चाहता था, ताकि उसके भाई को पता न चल सके कि चक्की उसने चुराई है.

चलते-चलते रास्ते में सागर पड़ा. उन्होंने एक नाविक से उसकी नौका ख़रीद ली और उसमें बैठकर सागर पार करने लगे.

अब तक शांत उसकी पत्नि से रहा नहीं जा रहा था. वह फिर से पूछने लगी, “अब तो बता दो कि बात क्या है? हम ये चक्की लेकर अपना घर-बार सब छोड़कर कहाँ जा रहे हैं.”

लल्लन बोला, “ये कोई ऐसी-वैसी चक्की नहीं है, बल्कि जादुई चक्की (Jadui Chakki) है. इससे जो मांगों सब देती है. सुखवन इस जादुई चक्की के बल पर ही इतना धनवान बन गया है. हम दूसरे देश जाकर बस जायेंगे और इस चक्की के सहारे बहुत अमीर हो जायेंगे. आओ मैं तुम्हें चक्की से कुछ मांगकर दिखाता हूँ.”

वह चक्की से बोला, “चक्की चक्की मुझे नमक दो.”

चक्की से नमक निकलने लगा. उसकी पत्नि की आँखें फटी की फटी रह गई. चक्की से नमक निकलता जा रहा था. वह लल्लन से बोली, “अब इसे बंद भी करो.”

लेकिन लल्लन को चक्की बंद करना आता ही नहीं था. नमक निकलता गया और नाव में भरता गया. छोटी सी नाव उतना बोझ सह नहीं सकी और डूब गई. लल्लन और पूरा परिवार सागर में डूब कर मर गया. उसे अपनी दुष्कर्मों और लालच का फ़ल मिल चुका था.

कहते हैं कि आज भी वह जादुई चक्की (Jadui Chakki) सागर में चल रही है और उससे नमक निकल रहा है. इसलिए सागर का पानी खारा है.
     
 
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